भारत में फ्रांसीसियों का आगमन
फ्रांसीसीयों ने भारत में सबसे अंत में प्रवेश किया। इनसे पहले यहां पर पुर्तगाली, डच और अंग्रेज लोग अपने व्यापारिक कोठियां स्थापित कर चुके थे। डेन के निवासी 1616 ईस्वी में भारत आए। फ्रांस के सम्राट लुइ 14वे के मंत्री कोलबर्ट के सहयोग से 1664 ईस्वी में भारत में फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई। यह सरकारी आर्थिक सहायता पर निर्भर थी, इसलिए इसे सरकारी व्यापारिक कंपनी भी कहा जाता है।
भारत में फ्रांसीसीयों की पहली कोठी फ्रेंको कैरो द्वारा सूरत में 1668 ईसवी में स्थापित हुई। गोलकुंडा रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्र प्राप्त करने के बाद फ्रांसीसीओं ने अपनी दूसरी व्यापारिक कोठी की स्थापना 1669 ईस्वी में मछलीपट्टनम में की। 1673 ईसवी में फ्रांसवा मार्टिन तथा बेेेलंगर दी लेस्पिन ने वालि कोंडपुराम के मुस्लिम सूबेदार शेर खा लोदी से पुर्दूचेरी को प्राप्त कर किया। पुर्दूचेरी में ही फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी की नींव डाली। बंगाल के तत्कालीन नवाब शाइस्ता खां ने 1674 ई 0 में फ्रांसीसियों को एक जगह दी जहां पर 1690-92 ईसवी के मध्य चंद्र नगर की प्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई। 1693 ईस्वी में फ्रांसीसी के कब्जे से डचों ने पांडिचेरी को छीन लिया जो 1697 ईस्वी में संपन्न रिज़विक समझौते के बाद ही 1701 ईस्वी में पांडिचेरी को पूर्व में फ्रांसीसी बस्तियों का मुख्यालय बनाया गया और मार्टिन को भारत में फ्रांसीसी मामलों का महानिदेशक नियुक्त किया गया। पांडिचेरी के कारखाने में ही मार्टिन ने फोर्ट लुई का निर्माण कराया। फ्रांसीसी ने 1721 ईस्वी में मॉरीशस, 1725 ईस्वी में मालाबार तट पर स्थित माही एवं 1739 ई 0 को कारीकल पर अपना अधिकार जमा लिया। 1742 ईस्वी में से पूर्व फ्रांंसीसीओ का मूल उद्देश्य व्यापारिक लाभ कमाना था परंतु 1742 ईसवी के बाद डुप्ले के पांडिचेरी का गवर्नर नियुक्त होने पर राजनीतिक लाभ व्यापारिक लाभ से महत्वपूर्ण हो गया। डुप्ले की इस महत्वकांक्षा ने ही भारत में फ्रांसीसीओं के पतन के मार्ग को प्रशस्त किया।
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