Friday, July 12, 2019

आधुनिक भारत का इतिहास: भारत में डचों का आगमन


                             भारत में डचों का आगमन


दक्षिण पूर्व एशिया के मसाला बाजारों में सीधा प्रवेश करना ही डचों का महत्वपूर्ण उद्देश्य था। डच लोग हालैंड के निवासी थे। भारत में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1602 ईस्वी में की गई। वैसे 1596 ईसवी में भारत में आने वाला प्रथम डच नागरिक कारनोलिस डेहस्त्मन था। 20 मार्च 1602 ईसवी को एक राजकीय घोषणा के आधार पर यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ द नीदरलैंड की स्थापना की गई। इस कंपनी की देखरेख के लिए 17 व्यक्तियों का बोर्ड बनाया गया। इस बीच डच सरकार ने संसद द्वारा बोर्ड को 21 वर्षों के लिए युद्ध करने, संधि करने, प्रदेश पर अधिकार करने तथा किलेबंदी करने का अधिकार प्रदान किया। स्थापना के समय कंपनी की पूंजी 6500000 गिल्डर थी। डचों का पुर्तगालियों से संघर्ष हुआ और धीरे-धीरे डचों ने भारत की सभी महत्वपूर्ण मसाला उत्पादन क्षेत्रों पर कब्जा कर पुर्तगालियों की शक्ति को कमजोर कर दिया। डचों ने मसाला द्वीप पुंज(Indonesia) को अपना प्रारंभिक केंद्र बनाया। 1605 इसवी में डचों ने पुर्तगालियों से अमवायना ले लिया तथा धीरे-धीरे मसाला द्वीप पुंज ( इंडोनेशिया ) में उनको हराकर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने जकार्ता जीतकर 1619 ईस्वी में इसके खंडहरों पर  बटेेविया नगर बासाया। 1639 में उन्होंने गोवा पर घेरा डाला और 1641 में मलक्का पर कब्जा कर लिया जबकि 1658 में सीलोन की अंतिम बस्ती पर अधिकार जमा लिया। डचों ने गुजरात में कोरोमंडल समुुुुद्र तट, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में व्यापारिक कोठियां  खोली।

         

डचों ने भारत में अपना पहला कारखाना 1608 इसवी में मछलीपट्टनम में खोला। मछलीपट्टनम से डच लोग नील का निर्यात करते थे। डच लोग भारत से मुख्यत: मसालों, नील, कच्चे रेशम, शीशा, चावल व अफीम का व्यापार करते थे। डचों ने मसालों के स्थान पर भारतीय कपड़ों को अधिक महत्व दिया। यह कपड़े कोरोमंडल तट, बंगाल और बिहार से निर्यात किए जाते थे। भारत से भारतीय वस्तुओं को बनाने का श्रेय डचों को जाता है। पुलीकट में निर्मित फैक्ट्री का नाम गोल्डरिया रखा गया। गोल्डरिया भारत में डचों की एकमात्र किला बंद बस्ती थी। पुलीकट से डच अपने स्वर्ण सिक्के पैगोडा को ढालते थे। 1627 ई 0 में बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री पीपली में स्थापित की गई ।चिंसुरा के डच किलों को  गस्ताविस फोर्ट के नाम से जाना जाता था।  1680 में स्थापित एक समृद्ध उत्पादन केंद्रों का भारत में अंतिम रूप से 1759 ईसवी में डच एवं अंग्रेज़ो के मध्य हुए वेदारा के युद्ध से हुआ। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व क्लाइव ने किया था। डचों के पतन के कारणों में अंग्रेजों की तुलना में नौशक्ति का कमजोर होना, मसालों के ऊपर अधिक ध्यान देना, बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति, अत्यधिक केंद्रीकरण की नीति आदि को गिना जाता है।



अगला भाग - 4 -- भारत में अंग्रेजों का आगमन कैसे हुआ ?

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